वैशाली : रोजाना 10 घण्टे अपनी सेवा देनेवाली नर्स ने   कही लोगों की सेवा ही मेरा धर्म, आजीवन निभाऊंगी इसे

वैशाली 12 मई 2020

– रात्रि सेवा में मन से देती हैं योगदान

वैशाली  : बचपन का सपना, सपना सेवाभाव का न कोई पराया न किसी से घृणा, जो भी आया इनकी सेवा से तृप्त होकर ही गया। सेवाभाव में लगे लोगों के कितने ही रूप हो सकते हैं पर उनमें नर्स वह कड़ी हैं जिनके बिना शायद हम स्वास्थय सेवाओं की कल्पना भी नही कर सकते। हम आज विश्व नर्सेज दिवस को मना रहे हैं। आज इस दिवस को सार्थक करता एक नाम सुषमा सोरेन हैं। जो देसरी स्थित पीएचसी में एएनएम के तौर पर कार्यरत हैं। वह इस वर्ष मनाए जा रहे विश्व नर्सिंग दिवस के थीम “नर्स स्वास्थ्य के लिये विश्व का नेतृत्व करने की एक आवाज” की नायिका भी हैं। मूलतः देवघर की रहने वाली सुषमा को बचपन से ही लोगों की सेवा करना अच्छा लगता था। जब उसके स्वप्नों को वैशाली के देसरी प्राथमिक चिकित्सालय ने पंख दिए। तो वह मन ही मन तृप्त हुई साथ ही लोगों को अपनी सेवा से सुख देने का संकल्प भी किया।

अब सुषमा के लिए काम के घण्टे भी मायने नही रखते। आलम यह है कि वह कोरोना प्रभावित प्रखंड में होने के बावजूद अपने काम में इस कदर मशगूल हैं कि अपने दो मासूम बच्चों को वह घर पर सिर्फ पति की बदौलत छोड़ कर आती है। पति का साथ भी ऐसा की उन्होंने इस पेशे में सुषमा के समर्पण को देखकर अपनी नौकरी छोड़ बच्चों की देखभाल में लगा दिया।
सुषमा कहती हैं काम के घण्टे मैं कभी नही गिनती। 10 घण्टे तो मैं अनिवार्य रूप से देती ही हूं। इसके अलावा भी प्रभारी सर के बुलावे पर रात में भी चली आती हूं। हाल ही में दिन की ड्यूटी के बाद भी डॉक्टरों के साथ धर्मदासपुर गयी तो वहां से 3 बजे रात को लौटी हूं। फिर सुबह मैं 8:30 बजे पीएचसी आ गयी। आइसोलेशन वार्ड, आंगनबाड़ी में टिका, लेबर रूम, क्षेत्र में डॉक्टर के साथ कोरोना संदिग्धों के गांव जाना। मैं ऊबी नहीं। जब से कोरोना का काल शुरू हुआ है, मैं नियमित रूप से 14 से 15 घण्टे अपनी सेवा दे रही हूं। अब मुझे यह अपना दूसरा घर लगता है। जो भी महिलाएं यह प्रसव के दौरान आती है वह मुझसे मिलने दुबारा आती हैं। कहती है दीदी आपने बहुत अच्छे से मेरा और बच्चे का ख्याल रखा था। मैं लोगों को परिवार नियोजन की भी सलाह देती हूं और माताओं को स्तनपान के लिए प्रोत्साहित करती हूं। 2016 से अभी तक जो प्यार और अपनापन मिला है वह इस पेशे से जुड़ी सेवा की बदौलत ही है। चाहे मैं कहीं रहूं यह लोगों की सेवा को ही अपना धर्म मानती आयी हूं और इसे ऐसे ही अपने जीवन के अंतिम क्षण तक निभाती भी रहूंगी।

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